हमारे मन की शक्ति अनंत है ।वह सुप्त और जागृत अवस्था में भी हमेशा क्रियाशील रहता है । वह ज्योति स्वरूप है, समय व कुछ न कुछ सोचता और यहां-वहां भटकता रहता है । कभी भूतकाल की घटनाओं का चिंतन करता है और कभी भविष्य के कल्पनालोक में भ्रमण करता है । मन प्रतिक्षण किसी न किसी विषय पर संकल्प-विकल्प चिंतन-मनन, तर्क कुतर्क में उलझा रहता है । एक पल के लिए भी नहीं रुकता । जागृत अवस्था में तो यह स्थिति चलती रहती है लेकिन गन्दगी के आवरण से ढका रहता है । इसलिए हमारा मन शुभ और कल्याणकारी बने, ईश्वर से यही प्रार्थना है । (यजुर्वेद ३/४/१ )
हमारा मन दिव्य शक्ति रूप है । यह बहुत बलवान और क्रियाशील है । सोते-जागते कभी भी यह अपना कार्य नहीं रोकता । हर परंतु; जब हम सो जाते हैं तब भी इस मन की क्रिया-कलाप अब बन्द नहीं होते, यह नाना प्रकार के स्वप्न देखने लगता है । चौबीसों घंटे कुछ से कुछ न कुछ करता ही रहता है । प्रकाश के गति से भी अधिक तेजी से कहीं ना कहीं पहुंच जाता है ।
जो मन में विचार करता है वही वाणी से कहता भी है, जो वाणी से कहता है ज्यादातर वही कर्म करता है और जो कर्म करता है उसी का फल उसको मिलता है । मन के विचार ही अंततः उसके चरित्र का निर्माण करते हैं । यदि मनुष्य का चिंतन शुभ है तो वचन और कर्म भी शुभ होंगे और जब कर्म शुभ होंगे तभी फल भी शुभ होगा । यदि चिंतन अशुभ होगा तो वचन, कर्म और फल भी अशुभ ही होंगे । मन का चिंतन महत्वपूर्ण है ।
बुरे विचारों का प्रभाव हमारे भीतर आसुरी वृत्तियों को जन्म देता है ।
मन तो लगाम के समान है जो इन्द्रीयों के घोड़ों पर नियंत्रण रखती है । मन में जब कुविचार होते हैं तो इन्द्रियां भी कुमार्गी बन जाती है । जिसका मन वश में होता है, उनकी इन्द्रियां भी सुधरे घोड़े की तरह वश में रहती है । जो अपवित्र विचारों से ग्रसित रहता है वह जन्म-जन्मांतर तक कष्ट पाता है । और शुद्ध विचारों वाला व्यक्ति अपने सत्कर्मों के फल स्वरुप सुख भोगता है और मुक्ति पाता है । मनुष्य के मन का अज्ञान और ज्ञान, शुभ और अशुभ विचार ही उसके बंधन या मोक्ष के कारण बनते हैं ।
हमें सदैव प्रयास करना चाहिए कि कुविचारों के मल के आवरण से हमारे मन की ज्योति धीमी न पड़ जाए । मन में उठने वाले संकल्प प्रवाह में एक भी अशुभ संकल्प न उठे । मन से सदा दिव्य, शुभ और कल्याणकारी संकल्पों का प्रवाह ही चलता रहे । विचारों की यह दिव्यता हमारे कर्मों में भी दिखाई देती है और उसी के आधार पर समाज हमारा मूल्यांकन भी करता है । हमारे कर्मों के आधार पर ही हमें यश-अपयश और मान-अपमान मिलता है । मन की पवित्रता ही हमारे कर्मों को पवित्र बनाती है । प्रचंड आत्मबल सम्पन्न व्यक्तियों के लिए मन को अपने वश में करना कठिन कार्य नहीं है ।