भागवत सेवा संस्था

भागवत सेवा संस्था

प्राणी मात्र को भगवद् रूप में देखना तथा अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार उन सबकी यथा संभव तन-मन-धन द्वारा सेवा कर, भगवच्चरणाविन्द में अर्पण कर देना ही, भागवत धर्म है । भगवान् वेदव्यास ने अठारहों पुराणों में परोपकार को पुण्य व पर-पीडन को पाप कहा है।

अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीड़नम् ॥

aṣṭādaśapurāṇeṣu vyāsasya vacanadvayam । paropakāraḥ puṇyāya pāpāya parapīड़nam ॥

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इसी भावना से प्रेरित हो, परमपूज्य भागवत-भूषण पुराणाचर्य पं. श्री श्रीनाथ शास्त्री “श्रीदादागुरुजी” का आशीर्वाद प्राप्त कर, वैदिक-पथिक भागवतकिङ्कश्री अनुराग कृष्ण शास्त्री “श्रीकन्हैयाजी” ने सेवाधर्मी भक्तों की अभिरुचि को देखते हुए “भागवत सेवा संस्था” नामक एक स्थायी न्यास का पंजीकरण १२c के अन्तर्गत कोलकाता महानगर में सन् २००५ में कराया । जिसकी एक शाखा श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली श्रीधामवृन्दावन में अपनी अनेक सेवाएँ प्रदान कर रही है । इस संस्था के मार्गदर्शक व संरक्षक भागवतभूषण पं.श्री श्रीनाथ शास्त्री जी रहे हैं और विदेह रूप से भी आज भी सतत् उनका आशीर्वाद हम सबको दिशा निर्देश कर रहा है । पूज्य श्रीदादागुरुजी के द्वारा ही सन् १९६४ में स्थापित श्रीमद्भागवत विद्यालय के अन्तर्गत विप्र बालकों के पठन-पाठन का कार्य तथा इसी विद्यालय के प्रांगण में सनातन धर्म के संरक्षण व संवर्धन हेतु वैदिक यात्रा गुरुकुल नामक शिक्षा-संस्कार प्रकल्प, भागवत सेवा संस्था द्वारा संचालित हो रहा है ।संस्थापकाध्यक्ष भागवतकिङ्कर श्री अनुराग कृष्ण शास्त्री, सचिव डॉ कृष्ण कुमार शर्मा हैं । अपने व्यक्तिगत तथा पारिवारिक व्यस्तता से समय निकालकर इस पुनीत कार्य से जुड़ने का सौभाग्य विरले ही लोगों को प्राप्त हो पाता है ।

इस संस्था के उद्देश्य तथा गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं

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श्रीमद्भागवत के गहन अध्ययन के साथ सस्वर वेद पाठ, कर्मकाण्ड, ज्योतिष, संस्कृत व्याकरण आदि आर्ष ग्रन्थों के अध्ययन व शोध की व्यवस्था करना ।

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आधुनिक युगानुकूल अंग्रेजी, कम्प्यूटर, संगीत, सामान्य ज्ञान तथा चरित्र निर्माण के लिए नैतिक शिक्षा प्रदान करना ।

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आर्थिक दृष्टि से असमर्थ; परन्तु योग्य बालकों की समुचित शिक्षा की व्यवस्था करना ।

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आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों को सर्दी में कम्बल आदि वितरण करना, भोजन एवं वस्त्र की व्यवस्था करना ।

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निराश्रित गौमाता की यथा संभव सेवा व प्याऊ आदि की व्यवस्था करना ।

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प्राकृतिक आपदाओं – बाढ़ – भूकंप, भूस्खलन, तूफ़ान – ग्रस्त लोगों को समुचित सेवा पहुँचाना ।

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रक्तदान शिविर, नेत्र चिकित्सा शिविर, नि:शुल्क ऑप्रेशन, चश्मा-वितरण आदि समाज सेवा के कार्य करना ।

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वैदिक यात्रा गुरुकुल का संचालन एवं अनेक वर्षों से प्रतिवर्ष नेत्र चिकित्सा शिविर का आयोजन इसी भागवत सेवा संस्था के माध्यम से अनवरत हो रहा है।

भागवत सेवा संस्था के अन्तर्गत श्रीमद्भागवत विद्यालय में “अमरनाथ भारती ग्रन्थालय” नामक एक ग्रन्थागार भी है । विद्यालय परिसर में ही “पं. अमरनाथ ब्रह्मचारी जी गो सेवा सदन” नामक गोशाला भी है, जहाँ साहिवाल नस्ल की लगभग पैंतीस (३५) गौ एवं उनकी वंश परंपरा के नन्हें-नन्हें बच्चों की सेवा की जा रही है । विद्यालय परिसर में एक छात्रावास भी है, जहाँ लगभग पचास छात्रों के आवास, भोजन, वस्त्रादि की समुचित व्यवस्था है । 

ग्रंथालय

भागवत विद्यालय परिसर के अन्तर्गत भागवतभूषण पं. श्री श्रीनाथजी शास्त्री ,पुराणाचार्य के अग्रज श्री ब्रह्मचारी जी महाराज के नाम पर ही श्री अमरभारती ग्रंथालय का उद्घाटन, स्वयं श्री अखंडानन्द जी महाराज ने किया, जिसमें श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ‘भाईजी‘ (गीताप्रेस गोरखपुर), श्री नारायणदास भक्तमाली “मामाजी ” आदि विशिष्ट संत पधारे थे । भागवत विद्यालय के इस ग्रन्थालय में श्रीमद्भागवत की अनेक टीका, मीमांसा, तर्कशास्त्र, ज्योतिष एवं अनेक हस्तलिखित आदि ग्रंथो का संकलन है । इस प्रकार इस विद्यालय में ग्रंथो की सेवा का महनीय कार्य आरम्भ हुआ ।

गोशाला

गोशाला (“ गावो विश्वस्य मातर:”) – भागवतभूषण पुराणाचार्य पं. श्री श्रीनाथजी शास्त्री, “श्रीदादागुरुजी” के अग्रज तपोनिष्ठ गायत्री-रामायण उपासक श्री अमरनाथ ब्रह्मचारी जी महाराज को गौसेवा से एक विशेष लगाव था । वो स्वयं पुराना घर ( जो की बिहारीजी मंदिर के पास, पुराना शहर में एक श्रीसीतारामजी का मंदिर है, जिसका सम्बन्ध राजस्थान के झुंझुनु जिलान्तर्गत लोहार्गल तीर्थ में श्रीसीतारामजी के मंदिर से है ) में २ गौ सेवा हेतु लेकर आये । घर से इन गायों को विद्यालय में लाया गया । कुछ समय पश्चात् कोलकाता से २ श्यामा गौ और आयीं । धीरे-धीरे यह गौवंश परंपरा बढ़ते बढ़ते आज लगभग ३५ गौ एवं उनकी वंश परंपरा के नन्हें नन्हें बच्चे हैं । यहाँ प्राय: सभी साहिवाल नस्ल की देशी गौ हैं जिनकी सेवा से मानो सभी देवताओं की सेवा का अलभ्य लाभ प्राप्त होता है ।

छात्रावास

वैदिक यात्रा गुरुकुल एवं श्रीमद्भागवत विद्यालय के छात्रों के लिए यहाँ एक छात्रावास की सुविधा है, जहाँ लगभग ५० छात्रों के रहने की व्यवस्था की है । जिसमें प्राय: शायिका (द्वि-तलीय शय्या) के साथ कुछ पृथक शय्या तथा सभी विद्यार्थियों के लिए अपनी अलमारी भी है, जिसमें वे अपने जरूरत का सामान रखते हैं । बिजली-पंखा तथा ग्रीष्मकाल में कूलर की सुविधा भी उपलब्ध है ।

भोजन-प्रसाद कक्ष

छात्रों के लिए यहाें एक भोजन-प्रसाद कक्ष है, जहाँ पर सभी ऋषिकुमार, आचार्यगण तथा समस्त सेवादारों के लिए बालभोग-राजभोग तथा रात्रि के सात्विक-भोजन-प्रसाद की समुचित व्यवस्था है । मन्त्रोच्चारण के पश्चात भोजन करने की प्राचीन ऋषि-परम्परा का आदर करते हुए शारीरिक रूप से सुदृढ़ सभी जन पङ्गत  में एक साथ ज़मीन पर बैठकर प्रसाद पाते हैं । भोजन बनाने वाले सेवादार भोजन बनाते हैं तो गुरुकुल की ओर से प्रतिदिन भिन्न-२ ऋषिकुमारों द्वारा भोजन-प्रसाद परोसने तथा तदोपरान्त भोजन-प्रसाद कक्ष की स्वच्छता सेवा की जाती है ।

सङ्गणक कक्ष

वैदिक-पथिक भागवतकिङ्कर श्री अनुराग कॄष्ण शास्त्री “श्रीकन्हैयाजी” का भाव है कि इस गुरुकुल के विद्यार्थी न केवल संस्कृत का ज्ञान लें, बल्कि; आधुनिकीकरण की जानकारी भी प्राप्त करें । इसी उद्देश्य से वैदिक यात्रा गुरुकुल के सप्तवर्षीय पाठ्यक्रम में  सङ्गणक की शिक्षा के लिए एक संगणक-कक्ष की व्यवस्था है । इस कक्ष में १५/२० ऋषिकुमारों को बैठने की सुविधा है । सप्तवर्षीय पाठ्यक्रम के अन्तर्गत षष्ठ एवं सप्तम वर्ष में इस शिक्षा की व्यवस्था है ।

क्रीड़ाङ्गण

ज्ञानार्जन, मानसिक व्यायाम के लिए तो उत्तम है, परन्तु; शारीरिक रूप से भी ऋषिकुमार स्वस्थ हों, इसके लिए प्रात: योग के लिए एक खुला प्राङ्गण है, जहाँ नित्य प्रातः ६:०० बजे योग किया जाता है । साथ ही क्रीड़ा का निश्चित समय है, जिसमें ऋषिकुमारों के लिए शतरंज, कैरमबोट आदि कुछ आभ्यतंरिक तथा बैट-मिन्टन एवं क्रिकेट आदि वाह्य-खेलों की व्यवस्था है ।

सङ्गीत

सङ्गीत की शिक्षा माँ वीणा-वादिनी की आराधना ही है,जो स्वयं एक शास्त्र है। सङ्गीत भीतर की सुप्त तंत्रियों को जागृत करने का एक साधन है । इसी भावना को ध्यान में रखते हुए वैदिक यात्रा गुरुकुल में सङ्गीत-शिक्षा की भी व्यवस्था है । सप्त वर्षीय पाठ्यक्रम में तृतीय वर्ष से यह शिक्षा प्रदान की जाती है । सङ्गीत-प्रशिक्षण भाषा और तर्क को विकसित करने में मदद करता है । छात्र सङ्गीत प्रदर्शन करने के लिए लगातार अपनी स्मृति का उपयोग करते हैं । सङ्गीत के माध्यम से संस्मरण का यह कौशल, छात्रों के लिए शिक्षा में बड़ा उपयोगी होता है ।

प्राथमिक-चिकित्सा कक्ष

ऋषिकुमारों एवं यहाँ रहने वाले सभी सेवादारों के लिए एक प्राथमिक-चिकित्सा कक्ष भी है, जहाँ प्राथमिक-उपचार की सेवा प्रदान की जाती है । यहाँ साधारण बीमारी जैसे पेट-दर्द, साधारण-बुखार, सर-दर्द आदि की औषधि भी रखी जाती है । किसी को खेल-कूद आदि में किसी भी प्रकार की चोट इत्यादि लगने पर प्राथमिक-चिकित्सा कक्ष में शीघ्र उसके उपचार का सेवा-प्रबन्ध है ।

यज्ञ कुण्ड

कुडि रक्षणे धातुसे कुण्ड शब्द का निर्माण हुआ है । कुण्ड, यजमान ऋत्विक आदि की सर्वविध रक्षा करता है । कुण्ड अग्निदेव के प्रज्ज्वलित होने का वह स्थान है जहाँ पञ्च-भू संस्कार एवं कुश-कुण्डिका के माध्यम से अग्निके अनेक संस्कार कर उसे हुतवह की योग्यता प्रदान की जाती है, ताकि उन देवताओं के पास हवन की सामग्री पहुँचा दें । हवन के निमित्त देवताओं का आह्वन किया जाता है । कुण्ड में अग्नि के माध्यम से ईश्वर की उपासना करने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं । हवन अर्पण के लिए “स्वाहा” शब्द का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है । स्वाहा, अग्निदेव की पत्नी को कहा जाता है । कुण्ड की शुद्धि गोमय लेपन से की जाती है । कर्मानुष्ठान के अनुसार कई तरह के यज्ञों का विधान है । यज्ञ कुण्ड के कई प्रकार के आकार होते हैं । वर्णाश्रम के अनुसार इन कुण्डों की आकृति का शास्त्रों में निर्धारण किया है । वैदिक यात्रा गुरुकुल के प्राङ्गण में एक यज्ञशाला भी है, जहाँ हर तरह का होम-हवन होता है ।

Vaidik Sutra