श्रीभक्तमाल कथा
भक्त के बिना भगवान् का अस्तित्व कैसा ? भक्त की भक्ति रूपी साधना ही भगवान् को प्रतिष्ठित करती है । चारों युगों के भक्तों की श्रृंखला माला ही भक्तमाल है । श्रीभक्तमाल ग्रन्थ के रचियता श्री नाभादास जी महाराज है । भक्तमाल कथा में भगवान् के प्रति भक्तों का समर्पण और उनकी दिव्य भक्ति का दर्शन हैं ।
भक्ति भक्त भगवन्त गुरु चतुर नाम बपु एक ।
इनके पद बंदन किए, नासत बिघ्न अनेक ॥
( भक्तमाल १ )
Bhakti bhakta bhagavanta guru catura nāma bapu eka ।
Inake pada baṃdana kie, nāsata bighna aneka॥
( Bhaktamāla 1 )
इस ग्रन्थ की यह विशेषता है कि इसमें सभी संप्रदयाचार्यों एवं सभी सम्प्रदायों के संतो का समान भाव से श्रद्धापूर्वक संस्मरण किया गया है ।
इसमें चारों युगों के भक्तों का वर्णन हैं । ध्रुव, प्रहलाद, द्वादश प्रधान भक्त सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, ताजदेवी आदि अनेकों भक्तो की माला ही भक्तमाल है । भगवान् की कथा भक्त सुनते हैं, तो भक्तों की कथा स्वयं भगवान् सुनते हैं ।
भगवान् अपने से अधिक भक्तों को आदर देते हैं । भगवान् अपने भक्तों तथा सन्तो के हैं । श्रीमद्भागवत महापुराण में “अहं भक्त पराधीनः” कहकर भगवान् ने स्वयं भक्तों के आधीन होने की बात स्वीकारी है तथा गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है – “मोते संत अधिक कर लेखा” । भगवान् स्वयं कह रहे हैं कि मुझसे भी अधिक मेरे सन्तों की महिमा हैं ।
ज्ञान, कर्म व भक्ति एवं इनके विभिन्न रसों में भीगे हुए भक्तों ने किस प्रकार इस भवसागर को सहजता से पार किया तथा भगवान् को अपने प्रेम पाश में बाँध लिया, इसको समझने का साधन है श्रीभक्तमाल ।
श्रीभक्तमाल हमें क्या सिखाती है ?
इन कथाओं का श्रवण करने से साधक के जीवन में साधना का बल प्रबल हो जाता है और वह साधक अपने वास्तविक लक्ष्य को गुरु कृपा से सहज ही प्राप्त कर लेता है ।
भगवद्भक्तों के गुण और चरित्रों का श्रवण – कीर्तन करने से इस संसार में कीर्ति और सभी प्रकार के कल्याणों की प्राप्ति होती है । आधिभौतिक, आधिदैविक, आध्यात्मिक – तीनों तापो का नाश होता है ।
भक्तमाल कथा के श्रवण से हमें भक्तो के व्यवहार, गुण और भावों का पता चलता है, जो हमें भगवद्मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है ।
कुछ भक्तों की भक्ति का दर्शन
ज्ञान-भक्ति और कर्म पथ के जग में भक्त अनेक ।
वर्णन यहाँ पर करते "श्रीश", उनमें से कुछ एक ।
भक्तों के सुमिरन से होते, जग में पूरण काम ।
इन समेत सब भक्तों को है, नित "अनुराग" प्रणाम ।।
(स्वरचित)
ईश्वर की अनुकम्पा से संतत्त्व आता है और भक्ति फूलती-फलती है।
भक्त और संत तो सभी का कल्याण चाहते हैं तथा सदैव भगवान् का स्मरण कराने का कार्य ही करते हैं।
भक्त श्रीतुलसीदास
श्रीरामायण जी के परम प्रणेता, बाल्मीकि महाराज ।
कलि में “तुलसी” रूप पधारे, सकल सँवारा काज ।
वेद-आगम-पुराण सम्मत, भाषाबद्ध करी रामायण ।
द्वादश ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं जिनके, देव-मुनि-नर करते गायन।
“श्रीश” ईश हनुमन्त कृपा से, जिन्हें मिले प्रभु राम ।
ऐसे “तुलसीदास” को सबका, है “अनुराग” प्रणाम ॥
भक्तिमती मीरा बाई
राजस्थान की माटी ने भी, लिखी ये अजब कहानी थी।
इक अद्भुत बिटिया मेड़ता की, बनी मेवाड़ महारानी थी।
गोपी भाव में रहती हर पल, “गिरधर” को पति जानी थी।
गिरधर के “अनुराग” रंग रंगी “मीरा” दिवानी थी ॥
भक्त सूरदास
नेत्र रहे नहीं देख सकें जो, सकल जगत के नर और नारी ।
भाव “अनुराग” के नेत्र से सूरा, देखे कृष्ण की लीला सारी ।
बालकृष्ण की लीला पर नित, “सूरदास” जायें बलिहारी ।
ऐसे भक्त की भक्ति “श्रीश”, सकल जगत में सबसे न्यारी ॥
भक्त श्रवणकुमार
सारे जहाँ से प्यारी जिनको, मातृ-पितृ की सेवा है ।
मातृ-पितृ ही जीवन सर्वस, वही तो देवी – देवा है ।
मातृ-पितृ की सेवा भक्ति में, जिनका सुन्दर नाम है ।
ऐसे “श्रवणकुमार” भक्त को, भाव “अनुराग” प्रणाम है ॥
भक्त कबीर
इक अल्हड़ भक्त कबीर ।
स्पष्ट वाणी में गूढ़ भाव लिए, शब्द चलें ज्यों तीर ॥
जाति पाँति नहीं जान सके कोई, ऐसा धरा शरीर ॥
ज्ञानयोग की शैली लिए पद, अरु “अनुराग” की पीर ॥
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