निमि-नवयोगेश्वर संवाद

श्रीमद्भागवत महापुराण के ११वें स्कन्ध में श्रीवसुदेव-नारद संवाद के अन्तर्गत देवर्षि नारद ने निमि-नवयोगेश्वर संवाद सुनाया है ।

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् ।
करोति यद् यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयेत्तत् ॥
( श्रीमद्भागवत महापुराण ११/०२/३६ )

kāyena vācā manasendriyairvā buddhyā''tmanā vānusṛtasvabhāvāt ।
karoti yad yat sakalaṃ parasmai nārāyaṇāyeti samarpayettat ॥
(śrīmadbhāgavata mahāpurāṇa 11/02/36)

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 श्री ऋषभदेव, जो कि भगवान् नारायण के २४ अवतारों में एक हैं । उनके १०० पुत्रों में से ९ पुत्र आत्मविद्या के विशारद हुए और योगेश्वर कहलाये । जिनके नाम क्रमशः हैं –

कवि, हरि, अंतरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस तथा करभाजन ।

एक बार सूर्यवंश के धर्मात्मा राजा निमि ने इन योगेश्वरों से कुछ प्रश्न किये हैं, जिनके सम्यक प्रकार से उत्तर इन योगेश्वरों ने दियें हैं । इस संवाद को ही निमि-नवयोगेश्वर संवाद कहा जाता हैं ।

यह प्रश्न इस प्रकार हैं :-

  • परम कल्याण का स्वरूप क्या है और उसका साधन क्या है ?
  • भगवद्भक्त का लक्षण वर्णन कीजिये । उसके क्या धर्म क्या हैं और कैसा स्वभाव होता है ? वह मनुष्यों के साथ व्यवहार करते समय कैसा आचरण करता है ? क्या बोलता है और किन लक्षणोंके कारण भगवान् का प्यारा होता है ?
  • मनुष्यों के साथ व्यवहार करते समय वह कैसा व्यवहार करता है? वह क्या बात करता है और वह कौन सा गुण है जो उसे सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्यारा बनाता है।
  • सर्वशक्तिमान परमकारण विष्णुभगवान् की माया का क्या स्वरूप है ?
  • माया के पार जाने का उपाय क्या है ?
  • जिस परब्रह्म परमात्माका नारायण नामसे वर्णन किया जाता है, उनका स्वरूप क्या है ?
    कर्मयोग क्या हैं ?
  • भगवान् की उन लीलाओंका वर्णन कीजिये, जो वे अबतक कर चुके हैं, कर रहे हैं या करेंगे ।
  • जिनकी कामनाएँ शान्त नहीं हुई हैं, लौकिक-पारलौकिक भोगोंकी लालसा मिटी नहीं है और मन एवं इंद्रियां भी वशमें नहीं हैं तथा जो प्रायः भगवान् का भजन भी नहीं करते, ऐसे लोगोंकी क्या गति होती है ?
  • भगवान् किस समय किस रङ्ग का, कौन सा आकार स्वीकार करते हैं और मनुष्य किन नामों और विधियोंसे उनकी उपासना करते हैं ?

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