रुद्राभिषेक

'वेदः शिवः शिवो वेदः' वेद शिव हैं और शिव वेद हैं अर्थात् शिव वेदस्वरूप हैं ।
यह भी कहा है कि वेद नारायण का साक्षात् स्वरूप है:- 'वेदो नारायणः साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुम' ।

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥

Lōkābhirāmaṁ raṇaraṅgadhīraṁ rājīvanētraṁ raghuvanśanātham.
Kāruṇyarūpaṁ karuṇākaraṁ taṁ śrīrāmacandraṁ śaraṇaṁ prapadyē.

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इसके साथ ही वेद को परमात्मा का निःस्वास भी कहा गया है । इसीलिए भारतीय संस्कृति में वेद की अनुपम महिमा है । जैसे ईश्वर अनादि – अपौरुषेय हैं, उसी प्रकार वेद भी, सनातन अनादि, जगत में अनादि अपौरुषेय माने जाते हैं । इसलिए वेद मन्त्रों के द्वारा शिवजी का पूजन, अभिषेक, यज्ञ और जप आदि किया जाता है । शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं । शिव को ही ‘रुद्र’ कहा जाता है, क्योंकि
“रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:”

यानी जो सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं, वे रुद्र हैं ।

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं । रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान् शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं । ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है । रुद्राभिषेक भगवान् शिव को प्रसन्न करने का सबसे प्रभावी उपाय है । श्रावण मास या शिवरात्रि के दिन यदि रुद्राभिषेक किया जाये तो इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है । अपने कल्याण के लिए भगवान् सदाशिव की प्रसन्नता के निमित्त निष्काम भाव से अथवा सकाम भाव से यजन करना चाहिए । शास्त्रों में विविन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करवाना चाहिए ।

रुद्राभिषेक का उद्देश्य

जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक प्रगति या समस्याओं और कठिनाइयों से राहत का भूमिगत लाभ चाहता है, तो रूद्राभिषेक किया जा सकता है । यह विश्वास किया जाता जाता है कि रुद्र अभिषेक, जन्मकुंडली में शनि से पीड़ित परेशानी का सामना कर रहे लोगों की रक्षा करता है । रूद्राभिषेक परिवार में सुख-शांति, धन-धान से सम्पन्नता, वंश-वृद्धि, उत्तम स्वास्थ और सफलता प्रदान करता है ।

रुद्राभिषेक पाठ एवं जप

उत्तम श्रेणी

पूजन: गौरी-गणेश, वरुण कलश पूजन, पुण्याहवाचन, नान्दी-श्राद्ध व आयुष्य मंत्र जप, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, वास्तु, क्षेत्रपाल पीठ निर्माण व पूजन, नवग्रह मण्डल, असंख्यात् रूद्रकलश एवं द्वादशलिङ्गतोभद्र पीठ निर्माण व पूजन, ब्राह्मण पूजन आदि ।

रुद्राभिषेक: ११०००/- पार्थिव शिवलिङ्ग निर्माण व कामना के अनुसार विशिष्ट सामग्री से यथा-संख्या अतिरूद्राभिषेक ( एकादशिनी रुद्री के १३३१ आवृत्तिपाठ ) हवन-पूर्णाहुति तथा श्रेयोदान ।

ब्राह्मण संख्या -११
विप्र अनुष्ठान दिवस संख्या – १२१
दिन 

मध्यम श्रेणी

पूजन:पूजन: गौरी गणेश, वरुण कलश पूजन, पुण्याहचन, नान्दी श्राद्ध, आयुष्य मंत्रजप, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका निर्माण एवं पूजन, नवग्रह मण्डल लिङ्गतोभद्रमण्डल निर्माण एवं पूजन ।

रुद्राभिषेक: ११००/- पार्थिव शिवलिङ्ग निर्माण व कामनार्थ महारुद्राभिषेक ( एकादशिनी रुद्री के १२१ आवृत्तिपाठ ) हवन-पूर्णाहुति व श्रेयोदान ।

ब्राह्मण संख्या -११
विप्र अनुष्ठान दिवस संख्या – ११
दिन 

सामान्य श्रेणी

पूजन: गौरी-गणेश व वरुण कलश स्थापना तथा शिवपरिवार पूजन ।

रुद्राभिषेक: लघुरुद्राभिषेक ( एकादशिनी के 11 पाठ ) १०८ पार्थिव शिवलिङ्ग निर्माण व पूजन हवन-पूर्णाहुति व श्रेयोदान ।

ब्राह्मण संख्या -११
विप्र अनुष्ठान दिवस संख्या – ०१
दिन 

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