किसी भी धार्मिक ग्रन्थ, वेदमन्त्र या पाठ्य पुस्तकों को रटने से वास्तविक लाभ नहीं मिलता, हमें तो उस पुस्तक में लिखे नियमों को अपने जीवन में धारण करना चाहिए ( ऋग्वेद १/२२/१९ )
2019
किसी भी धार्मिक ग्रन्थ, वेदमन्त्र या पाठ्य पुस्तकों को रटने से वास्तविक लाभ नहीं मिलता, हमें तो उस पुस्तक में लिखे नियमों को अपने जीवन में धारण करना चाहिए ( ऋग्वेद १/२२/१९ )
‘स्नान’ शब्द प्रक्रियात्मक है । यह शब्द धोना, मार्जन करना, पानी में डुबकी लगाना आदि अर्थ धारण करता है । नित्य स्नान करने से शरीर स्वच्छ और मन प्रसन्न रहता है । प्रातःकाल जल से स्नान करना एक बाह्य क्रिया और स्थूल क्रिया है । इसे शरीर की शुद्धि के लिए अपनाया जाता है ।
मनुष्य का बाहर मन और अन्तर्मन शुद्ध होना चाहिए । धर्म से कमाये हुए धन से किया गया परोपकार फलदायी होता है । रिश्वत लेना, बेइमानी, बलपूर्वक छीना गया धन व्यक्ति के परिवार को नष्ट कर देता है । ( ऋग्वेद ७-५६-१२ )
जो मनुष्य अपना आचरण शुद्ध बनाते हैंं । और दूसरों के आचरण को भी परिष्कृत करते हैं । हमें उनके सानिध्य में रहना चाहिए जिससे हमारे मन की मलीनता दूर हो और हम दुष्टों की दुष्टता दूर कर सकें ( यजुर्वेद ३५/११ )
ऋग्वेद के 5/5/2 में कहा गया है- “विद्वान् पुरुष” सत्य और ज्ञानके सदुपयोग से लोगो को सुखी बनायें, जैसे गाय अपने दूध से अपने पालक को सुखी बनाती है ।