हमें जीवन की प्रत्येक घटना से कोई ना कोई सकारात्मक सीख अवश्य लेनी चाहिए ।
जीवन रूपी वृक्ष में विनम्रता ही वह फल है, जो अभिमान रूपी डाल को झुकाये रखता है ।
सद्गुरु वास्तविक माध्यम है, वास्तविक मंज़िल ईश्वर है ।
मुक्ति देने के बाद भगवान् मुक्त हो जाते हैं, परन्तु भक्ति देने के बाद भगवान बंधन में आ जाते हैं ।
जीवन की सार्थकता ही जीवन की सरलता में है ।
जिसके जीवन में झुकना नहीं हैं, उसके जीवन में टूटना निश्चित हैं ।
मृत्यु की याद ही संसार से वैराग्य और भगवान् से अनुराग उत्पन्न करती हैं ।
जिंदगी में इंसान की सबसे बेहतरीन पहचान उसकी अपनी मुस्कुराहट है ।
जिस कार्य के लिए अपनी आत्मा भीतर से टोक दे, उसे आगे बढ़ाने से पहले ही रोक देना चाहिये ।
विश्वास रखो कि ईश्वर ही हमारे परम हितैषी हैं ।
किसी भी शास्त्र का ज्ञान स्वयं पढ़कर के नहीं हो सकता। बल्कि; गुरूमुख से ही प्राप्त होता है ।
माता पिता की आज्ञा का सहर्ष पालन करना ही उनकी सच्ची सेवा है ।
सत्संग के अभाव और कुसंग के प्रभाव से ही, जीवन में दोषों का आविर्भाव होता है ।
बीते पल लौटकर कभी वापस नहीं आते, पर; उनकी यादें सदा साथ रहती हैं ।
भीतर के क्रोध को नहीं, बोध को जगाओ, तभी सच्चा जागना है। वरना, सुबह उठने पर आँख तो सभी खोलते हैं ।
अनुभव बाहर से प्राप्त होता है परन्तु अनुभूति भीतर की वस्तु है और भगवान् अनुभव का नहीं, अनुभूति का विषय है ।
मेरे लिए इस बात का महत्व नहीं है कि ईश्वर हमारे पक्ष में है या नहीं, मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर सदैव सही होता है ।
जीवन में वापस देखो, तो अनुभव होगा। आगे देखो, आशा चारों ओर देखिए और परमात्मा सत्य और आत्म विश्वास के लिए अपने भीतर देखने के लिए ।