श्रीशिव महापुराण
भगवान् श्री साम्ब सदाशिव की अनुपम अद्भुत दिव्य कथाओं की चर्चा ही श्रीशिव पुराण हैं । भगवान् शिव की वाणी से ही प्रकट होने वाली यह दिव्य कथा है । परम वैष्णव भगवान् श्रीसाम्ब सदाशिव की यह कथा, शैवों का कण्ठहार है ।
हस्तेक्षमाला हृदि कृष्ण तत्त्वं, जिह्वाग्रभागे वर कृष्ण मन्त्रम्।
यन्मस्तके केशवपादतीर्थं,
शिवं महाभागवतं नमामि ॥
hastekṣamālā hṛdi kṛṣṇa tattvaṃ jihvāgrabhāge vara kṛṣṇa mantram ।
yanmastake keśavapādatīrthaṃ ।
śivaṃ mahābhāgavataṃ namāmi ॥
इस पुराण में शिव-भक्ति और शिव-महिमा का दिव्य वर्णन किया गया है । ज्ञान-भक्ति के साथ यह ग्रन्थ विशिष्ट रूप से कर्म प्रधान है । प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है । इसमें प्रकृति के अन्तर्गत शिव की अष्ट मूर्तियों का भी वर्णन है । इसमें रुद्राक्ष, बेलपत्र, भस्मादि की अद्भुत महिमा वर्णित है । दिनों की उत्पत्ति एवं उनके देव तथा महीनों का वर्णन भी श्री शिव पुराण में सम्यक् प्रकार से किया गया है ।
शिव जी की वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है। शीश पर गङ्गा और चन्द्र जीवन का प्रतीक हैं । शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु का प्रतीक है। यह जीवन, गङ्गा की धारा की भाँति बहते हुए मोक्ष रूपी सागर में लीन हो जाती है ।
श्री साम्ब सदाशिव अजर, अमर, अजन्मा हैं, यह श्री शिव पुराण बताती हैं । यह संसार प्रकृति और पुरुष अर्थात् शक्ति और शिव के द्वारा ही संचालित होता है । अत: इसमें केवल शिव ही नहीं, अपितु; शक्ति की भी अद्भुत महिमा का वर्णन है । द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग की महिमा और शिव के साथ शिव भक्तों की महिमा भी श्री शिव पुराण बताती है ।
शिव पुराण हमें क्या
सिखाती है ?
मनुष्य जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है और अन्त में भगवान् श्री शिव के परम धाम को प्राप्त करता है, शिव गण बन जाता है । कहाँ तक कहें – शिव स्वरूप ही हो जाता है ।
इस पुराण में २४००० श्लोक एवं आठ संहिताओं का उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष प्रदायक हैं । ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलाश संहिता, वायवीय संहिता ।
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