परिणायोत्सव
सोलह संस्कारों में एक विवाह, चारों आश्रमों में से एक गृहस्थाश्रम, नवजीवन का आरम्भ, जिसमें दायित्व की वृद्धि हो जाती है । इसी कारण इसे उद्वाह पर्व भी कहते हैं और यही परिणय पर्व भी है ।
परिणायोत्सव पर्व "श्रीश" यूँ, "अनुराग" से ऐसे मनाओ । अपनी सनातन संस्कृति को, “श्रीश” खोने से बचाओ ॥
वास्तविकता में दो परिवारों, दो विचारों, दो आत्माओं का मिलन ही तो विवाह है । एक दूसरे के प्रति प्रेम व आदर की भावना को सम्मान प्रदान करते हुए इन्द्रियों को असद् मार्ग से बचाते हुए अपने कुल के गौरव तथा वंश की वृद्धि करना ही सद्गृहस्थी का कर्तव्य है । साथ ही स्वयं धर्म के मार्ग का अनुसरण करते हुए अपनी संतति को भी धर्म के मार्ग पर चलाना सद्गृहस्थी का कर्तव्य होता है, वही दंपत्ति के जीवन की कसौटी भी है और उसका परिणाम ही गृहस्थ का सच्चा सुख है । विवाहोत्सव के वार्षिक माँगलिक पर्व पर स्वास्थ्य, सफलता एवं यश कीर्ति की कामना से आइये, कुछ ऐसा क्यों ना करें कि अपना परिणायोत्सव यादगार बनकर के रह जाए, साथ ही संस्कारवान् जीवन हो और उन संस्कारों में दृढ़ता आये । वैदिक यात्रा गुरुकुल परिवार, वृन्दावन के तत्त्वावधान में आपके व अपनों के परिणायोत्सव पर दीर्घायुष्य, व्यापार वृद्धि व घर में सुख-शान्ति-समृद्धि के लिए वैदिक यात्रा गुरुकुल के ११ ब्रह्मचारी ऋषिकुमारों के द्वारा श्रीविष्णुसहस्रनाम – २१, श्रीनारायणकवच – २१, श्रीरामरक्षा स्तोत्र – २१, श्रीहनुमान चालीसा – १११, श्रीसंकटमोचन – ११ के सुंदर पाठ का आयोजन किया जाता है । जिसके उपरान्त ब्रह्मचारी पाठकगण श्रेयोदान करते हैं, जिसका फल सीधे यजमान को प्राप्त होता है । जिस प्रकार पोस्ट बॉक्स में पत्र डाल देने के बाद वह अपने गन्तव्य तक पहुँच जाता है, उसी प्रकार श्रेयोदान का फल यजमान प्राप्त करता है । साथ ही ब्रह्मचारी पाठकगणों के द्वारा किये गए पाठ की ध्वनि से उठने वाली तरङ्गों के साथ आपका सीधा प्रणाम श्रीबाँके-बिहारी के चरण-कमलों तक पहुँच जाता है । इसके साथ ही आपको आपके मोबाइल अथवा ईमेल पर एक वीडियो प्रेषित की जाती है, जिसमें ऋषिकुमारों द्वारा वेदमंत्रों के उच्चारण के साथ शुभाशीर्वाद दिया जाता है । इस दिन के पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व को समझते हुए गोरक्षा की भावना के साथ स्वशक्ति एवं स्वेच्छा के अनुसार ब्रज में गौ-माता की सेवा अवश्य करें । तो आइए, इस माध्यम से अपनी संस्कृति और संस्कारों को बचाइए । साथ ही अपनी अगली पीढ़ी को भी संपत्ति के साथ सनातन संस्कृति का वारिस बनाइये । अपनी प्राचीन आर्ष-परम्परा से परिणयोत्सव मनाइये ।
परिणायोत्सव प्रति एक पाठ राशि – मात्र ३१००/- रू.
पाठ के साथ गुरुकुल के ऋषिकुमारों को मिष्ठान्न व गोमाता को गुड़ की सेवा राशि – मात्र ५१००/- रू.
पूजन व पाठ के साथ गरुकुल के ऋषिकुमारों के लिए प्रसाद तथा गोमाता को गुड़ की सेवा राशि – मात्र ११०००/- रू.
पूजन व पाठ के साथ गरुकुल में महाप्रसाद का आयोजन तथा गोमाता को गुड़ की सेवा राशि – मात्र २१०००/- रू.
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