वैदिक यात्रा गुरुकुल

गुरुकुल शिक्षा एक मात्र माध्यम है, जो संस्कार व संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाता है । जो मानव मात्र के सर्वाङ्गीण विकास के साथ धर्म का प्रकाश करता है ।

याति त्राति रक्षतीति वेदानुकूल वेदशास्त्र सम्मत
या यात्रा सा वैदिक यात्रा

yāti trāti rakṣatīti vedānukūla vedaśāstra sammata yā yātrā sā vaidika yātrā

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वैदिक यात्रा गुरुकुल इसी सिद्धान्त को लेकर चलने वाला एक प्रकल्प है जो वेदशास्त्रों के आधार पर आधारित है । इस भारत वर्ष ने अतीत के अनेक वर्षों में बहुत कुछ खोया है, जिससे संस्कृति व संस्कार दिशाहीन हुए हैं । आपसी प्रेम, सौहार्द, सामाजिकता, वेशभूषा, रहन-सहन, आहार-विहार आदि बहुत कुछ खोने के साथ हमने मूलत: मानवता को खोया है । पहले जीवन वेद तथा वैदिक-मन्त्रों पर आधारित था, आज मात्र यन्त्रों पर निर्भर रह गया है । यन्त्रों का भी सम्यक प्रकार से विवेकपूर्वक सदुपयोग हो तो भी उचित है, परन्तु; उसका दुरुपयोग कहीं न कहीं मानवीय जीवन शैली को विशेष रुप से प्रभावित कर रहा है । इन सब परिस्थितियों को देखते हुए वैदिक सनातन धर्म के रक्षार्थ सम्वत् २०६२ सन् २०११ से वैदिक यात्रा गुरुकुल ने श्रीधाम वृन्दावन में अपनी पहल की है । भागवत सेवा संस्था (रजि.) द्वारा संचालित वैदिक यात्रा गुरुकुल के नाम से आध्यात्मिक शिक्षण जगत में अपनी सेवा प्रदान कर रहा है ।

इस मुहीम में वैदिक यात्रा गुरुकुल ने सप्तवर्षीय पाठ्यक्रम

के अन्तर्गत विप्र बालकों को वेद, ज्योतिष, व्याकरण, न्याय, दर्शन, सङ्गणक, आङ्लभाषा आदि की शिक्षा के साथ सनातन वैदिक संस्कारों से समृद्ध कर वैदिक सनातन धर्म के रक्षक के रूप में विशेष व्यक्तित्तव निर्माण का संकल्प लिया है । मनोमंथन के साथ मनोरंजन के लिए क्रिकेट, बैडमिंटन व शतरंज आदि खेल तथा कराटे, काथा, नान-चाकू आदि के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है । महीने में ४ दिन प्रतिपदा – अष्टमी ( कृष्ण व शुक्लपक्ष ) को रामायण, महाभारत, कथा इत्यादि भी प्रोजेक्टर पर दिखाया जाता है । जिससे साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक व शास्त्र सम्मत अनेक जानकारियाँ भी प्राप्त हो सकें ।

गुरुकुल में ७ अध्यापकों के द्वारा सेवा प्रदान की जा रही है । परन्तु, इन सभी व्यवस्थों के लिए गुरुकुल परिसर वर्तमान में अभी छोटा पड़ रहा है, अतः इसके लिए श्रीधामवृन्दावन में ही एक विशाल भूखण्ड का क्रय किया गया है । जिसमें एक वृहद गुरुकुल, जहाँ आर्षऋषि गुरु परम्परानुसार वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ शिक्षा प्रदान की जाएगी, का निर्माण होना है । आइये, हम भी इस पुनीत यज्ञ में अपनी सामर्थ्यानुसार आहुति दें, ताकि सनातन आर्ष ग्रन्थों का संरक्षण व संवर्धन हो सके और मानव समाज में सनातन संस्कार व संस्कृति का पुनः स्थापन हो सके।

गुरुकुल की दिनचर्या :

प्रातः चार बजे से प्रारम्भ होकर रात्रि दस बजे तक होती है ।

प्रातः ४:०० – जागना ४:००-५:०० – स्नान ५:००-५:४५ संध्या ५:५०- ६:२०- योग ७:००- आरती ७:३०-अल्पाहार, उसके पश्चात भोजन पर्यन्त निर्धारित कक्षा में पढ़ाई । भोजनोपरान्त अल्पविश्राम । अध्ययन, खेल, जुडो-कराटे,  सङ्गीत इत्यादि सायंकाल को किये जाते हैं । तदोपरान्त सायंसंध्या और आरती, पुनः अध्ययन और भोजनोपरान्त विश्राम किया जाता है ।

प्रवेशार्थियों के लिए

वैदिक यात्रा गुरुकुल में प्रवेशार्थियों के लिए आयु ११ से १३ वर्ष है ।

प्रवेश से पहले प्रत्येक अभ्यर्थी को एक लिखित परीक्षा तथा मौखिक परीक्षा का प्रावधान है तथा कुण्डली परिक्षण भी किया जा सकता है । उसके बाद ही प्रवेश की पात्रता निश्चित होगी । तदोपरान्त प्रवेशार्थी तथा उनके अभिवावकों का परिचय के रूप में कुछ प्रामाणिक दस्तावेज (आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि ) लिये जायेंगे । सब कुछ उचित पाये जाने पर तथा प्रवेशार्थी व अभिवावकों के द्वारा गुरुकुल की निर्धारित नियमावली के अनुपालन करने की सहज स्वीकृति के बाद, गुरुकुल प्रबंधन के द्वारा निर्णीत होने पर ही प्रवेशार्थी बालक को प्रवेश प्राप्त होगा । सभी छात्रों को गुरुकुल के निर्धारित नियमों का अनुपालन दृढ़ता से करना होगा ।

शिक्षा का समर्थन करें

गुरुकुल में पढ़ने वाले आर्थिक दृष्टि से असमर्थ बच्चे की एक वर्ष की उपचारात्मक शिक्षाशास्त्र समर्थन करें ।

आपके इस योगदान से वैदिक यात्रा गुरुकुल में प्रदान की जाने वाली शिक्षा-सेवा, ऋषिकुमार के उत्तम भविष्य के निर्माण में महान सहायक होगी । ऋषिकुमार की एक वर्ष की फीस, यूनिफॉर्म, आवास एवं भोजन में सहभागी बनें, ताकि वे वैदिक-शिक्षा का लाभ प्राप्त कर सके । आपका यह एक क़दम भारत को पुन: जगद्गुरु बनाने वाले महान व्यक्तित्तव का निर्माण करने में सहायक हो सकता है ।

सहभगिता

प्रवेश के लिए

वैदिक संस्कृति, वेद और भागवत सीखने के लिए - संपर्क करें

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