विद्वान तथा बुद्धिमान लोग अपने ज्ञान से, चिंतन-मनन और अनुभव से यह जानते हैं कि हर पदार्थों में परमात्मा हैं। वही सम्पूर्ण जगत को आश्रय देता है। उसी से सारी सृष्टि प्रकट होती है । सभी प्राणी उसी से पैदा होते हैं और प्रलयकाल में उसी में विलीन हो जाते हैं । ( यजुर्वेद ३२/८ )
परमपिता परमेश्वर सर्वत्र व्याप्त हैं और वही सबका नियंता और नियामक है। सभी लोग मानते हैं कि कोई “शक्ति” है जो सारे संसार को,लाखों-करोड़ों ब्रह्मांडों को एक निश्चित गति से चलाती है। चाहे बुद्धि और तर्क की कसौटी परखें या फिर श्रद्धा और विश्वास के आधार पर माने लेकिन ईश्वर की सर्वव्यापकता को तो मानना ही पड़ेगा। वह प्रत्यक्ष दिखाई तो नहीं देता लेकिन उसके क्रिया-कलापों के द्वारा उसको अनुभव कर सकते हैं। परमात्मा सारे ब्रह्मांड में व्याप्त है, यह सारा विश्व उसी का ही रूप है।
भगवान् की हर जगह उपस्थिति को स्वीकार कर लेने से मनुष्य का आत्म बल बढ़ता है। हर समय एक शक्तिशाली, समर्थ संरक्षक के सानिध्य में रहने से प्रतिभा, क्षमता और पौरुष में वृद्धि होती है। हमारा मन सद्कर्मों की ओर बढ़ने लगता है। ईश्वरीय सत्ता के दिव्य प्रकार से प्रभावित होकर स्वयं ही पाप कर्मों से बचने लगता है। उसे यह आभास होता है कि वह परमात्मा की दृष्टि से बाहर नहीं है और उसे हर अच्छे और बुरे कर्मों का फल ईश्वर जरूर देगा। इस तरह जहां एक और मनुष्य सत्कर्मों की ओर बढ़ता है वहीं दुष्कर्मों से बचने लगता है। इससे मनुष्य देवत्व की राह पर चलने लगता है।
संसार में हर वस्तु किसी न किसी आधार पर टिकी है । यदि आधार छोटा और कमजोर होगा तो वह वस्तु अस्थिर हो जाएगी और उसकी स्थिति डवाडोल हो जाएगी । सर्वव्यापी परमेश्वर को अपना आधार बना लेने वाला मनुष्य सदैव निश्चिन्त रहता है । मोह, माया, लोभ, अहंकार के झंझावात उसे डिगा नहीं पाते, उसे सदा ईश्वर का सहारा मिलता रहता है । उस परमपिता परमेश्वर का ही सूक्ष्म अंश हमारी आत्मा है । उसी से इस शरीर में चेतना शक्ति का प्रभाव होता है, शक्ति का अजस्त्र भंडार हमारे शरीर में ही भरा है और हम इसे समझ ही नहीं पाते ।
लेकिन अच्छी सोच समझ वाले अपने भीतर ईश्वर की शक्ति महसूस करते हैं ।
यही शक्ति हमारे आत्मबल को बढ़ाती है और जीवन पथ की बाधाओं पर विजय पाना सरल हो जाता है । सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आश्रय ही सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है ।